हमें वज्र, जाल, दुर्यज्ञ और दुर्भोजन से बचाओ -रामनाथ विद्यालंकार ऋषिः परमेष्ठी प्रजापतिः । देवता अग्निः सरस्वती च। छन्दः भुरिग् ब्राह्मी त्रिष्टुप् । अग्नेऽदब्धायोऽशीतम पाहि मा दिद्योः पाहि प्रसित्यै पहि दुरिष्ट्यै पाहि दुरद्मन्याऽअविषं नः पितुं कृणु सुषदा योनौ स्वाहा वाडग्नये संवेशपतये स्वाहा सरस्वत्यै यशोभूगिन्यै स्वाहा ।।। -यजु० २ । २० | हे ( अदब्धायो ) मनुष्य को अहिंसित, अक्षत रखने वाले, (अशीतम ) सर्वव्यापक (अग्ने ) अग्ननायक जगदीश्वर! आप हमें ( पाहि ) बचाओ ( दिद्यो:) वज्र से, ( पाहि ) बचाओ (प्रसियै ) जाल से, ( पाहि ) बचाओ ( दुरिष्ट्यै ) दुर्यज्ञ से, ( पाहि) बचाओ (दुरद्मन्यै ) दुर्भोजन से, ( अविषं ) विषरहित (नः पितुं कृणु ) हमारे भोजन को करो। हे सरस्वती ! तू हमारे ( योनौ … Continue reading हमें वज्र, जाल, दुर्यज्ञ और दुर्भोजन से बचाओ
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